Thursday, December 7, 2023

Shri Hanuman Chalisa || श्री हनुमान चालीसा

 

श्री हनुमान चालीसा 

 

| | दोहा | | 

 

श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि

 

बरनउँ रघुबर बिमल जसु , जो दायक फल चारि | | 

 

बुद्धिहीन  तनु  जानिके ,    सुमिरो  पवन  कुमार | 

 

बल बुद्धि विद्या  देहु मोहिं , हरहु कलेश विकार | | 

 

 

| | चौपाई | | 

 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,  जय कपीस तिहूं लोक उजागर | १ |

 

रामदूत अतुलित बल धामा , अंजनि - पुत्र  पवनसुत  नामा | २ |

 

महावीर विक्रम बजरंगी ,  कुमति निवार सुमति के संगी | ३ | 

 

कंचन बरन बिराज सुबेसा ,  कानन कुण्डल कुंचित केसा | ४ | 

 

हाथ बज्र ओ ध्वजा बिराजै ,  कांधे मूँज  जनेऊ  साजे | ५ | 

 

शंकर सुवन केसरी नंदन ,  तेज प्रताप महा जग वंदन | ६ |

 

विद्यावान गुनी अति चातुर ,  राम काज करिबे को आतुर | ७ | 

 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया , राम लखन सीता मन बसिया | ८ |

 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ,  विकट रूप धरी लंक जरावा | ९ |

 

भीम रूप धरि असुर संहारे ,  रामचंद्र जी के काज संवारे | १० | 

 

लाय सजीवन लखन जियाये , श्री रघुबीर हरषि उर लाये | ११ | 

 

 रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई ,  तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई | १२ | 

 

सहस बदन तुम्हारो जस गावें , अस कहि श्रीपति कंठ लगावें | १३ | 

 

 सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ,  नारद सारद सहित अहीसा | १४ |

 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते ,  कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते | १५ | 

 

 तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ,  राम मिलाय राज पद दीन्हा | १६ | 

 

 तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ,  लंकेश्वर भये सब जग जाना | १७ | 

 

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ,  लील्यो ताहि मधुर फल जानू | १८ | 

 

 प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ,  जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं | १९ | 

 

 दुर्गम काज जगत के जेते ,  सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते | २० | 

 

 राम दुआरे तू रखवारे ,  होत न आज्ञा बिनु पैसारे | २१ | 

 

सुब सुख लहे तुम्हारी सरना ,  तुम रक्षक काहू को डर ना | २२ |

 

 आपन तेज सम्हारो आपै ,  तीनों लोक हाँक ते कांपे | २३ | 

 

 भुत पिसाच निकट नहीं आवें ,  महावीर जब नाम सुनावै | २४ | 

 

नासे रोग हरे सब पीरा ,  जपत निरंतर हनुमत बीरा | २५ | 

 

संकट ते हनुमान छुड़ावे ,  मन क्रम बचत ध्यान जो लावें | २६ | 

 

सब पर राम तपस्वी राजा ,  तिन के काज सकल तुम साजा | २७ |

 

और मनोरथ जो कोई लावै ,  सोइ अमित जीवन फल पावै | २८ |

 

चारो जुग परताप तुम्हारा ,  है परसिद्ध जगत उजियारा | २९ | 

 

साधु  संत के तुम रखवारे ,  असुर निकंदन राम दुलारे | ३० | 

 

 अष्ट सिद्धि नौ निधि की दाता ,  अस बर दीन जानकी माता | ३१ | 

 

राम रसायन तुम्हरे पासा ,  सदा रहो रघुपति के दासा | ३२ | 

 

तुम्हारे भजन राम को भावै ,  जनम जनम के दुःख बिसरावे | ३३ | 

 

 अंत काल रघुबर पुर जाइ ,  जहाँ जन्म हरी भक्त कहाई  | ३४ |

 

और देवता चित्त न धरई ,  हनुमन सेइ सर्व सुख करइ | ३५ | 

 

 संकट कटे मिटे सब पीरा ,  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा | ३६ |

 

 जय जय जय हनुमान गोसाई ,  जो करहु गुरुदेव की नाइ | ३७ |

 

 जो सत बार पाठ कर कोई ,  छूटहिं बंदि महासुख होई | ३८ | 

 

 जो यह पढ़ें हनुमान चालीसा ,  होइ सिद्धि साखी गौरीसा | ३९ | 

 

तुलसी दास सदा हरी चेरा ,  कीजे नाथ हृदय मह डेरा | ४० |

 

| | दोहा | | 

 

पवनतनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप  | 

 

राम लखन सीता सहित , ह्रदय बसहु सुर भूप | | 

 

| ॐ | 

 

 

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