Friday, December 15, 2023

Shri Sheetla Mata Chalisa || श्री शीतला माता चालीसा

 

श्री शीतला माता चालीसा 

 

 

||दोहा||


जय जय माता शीतला, तुमही धरे जो ध्यान।


होय बिमल शीतल हृदय, विकसे बुद्धी बल ज्ञान।।


घट घट वासी शीतला , शीतल प्रभा तुम्हार ।


शीतल छैंया मैं झुलई, मैया पलना डार ।।

 

।। चौपाई ।।

 

जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।


गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।


विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।।


मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।।


शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।


सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।


चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।


नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै।।


धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।।


ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।।


हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।।


हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।


विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।


बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।


अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो।।


पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है।।


अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे।।


श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना।।


कलश शीतलाका करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै।।


विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई।।


तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता।।


तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी।।


नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी।।


नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।


श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।


मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी।।


राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन।।


सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई।।


कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।


हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन।।


निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।


कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।


बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।


सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।


या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका।।


कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा।।


ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।


अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत।।


बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई।।

 

|| दोहा ||


यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय। 


सपनें दुख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।


बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू।


 जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।


||इतिश्री शीतला माता चालीसा समाप्त ||

 

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